सरदार पटेल की 150वीं जयंती: एकता पदयात्रा में राष्ट्रीय चेतना का उदय
लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर आयोजित राष्ट्रीय एकता पदयात्रा ने एक बार फिर भारतीय सभ्यता के मूल मूल्यों को जगाया है। करमसद से प्रारंभ होकर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी तक 11 दिनों की यह यात्रा केवल एक समारोह नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना के पुनर्जागरण का प्रतीक बनी।
राष्ट्रीय एकता की अमर ज्योति
उपराष्ट्रपति श्री सी.पी. राधाकृष्णन ने इस पदयात्रा को "भारत की अमर आत्मा का उत्सव" बताकर उस शाश्वत सत्य को रेखांकित किया जो हमारी सभ्यता की आधारशिला है। देशभर में 1300 से अधिक पदयात्राओं में 14 लाख युवाओं की सहभागिता इस बात का प्रमाण है कि सरदार पटेल द्वारा प्रज्ज्वलित एकता की अग्नि आज भी उतनी ही तेजस्वी है।
560 रियासतों को एकसूत्र में पिरोने वाले इस महान व्यक्तित्व ने दिखाया था कि राष्ट्र निर्माण केवल राजनीतिक एकीकरण नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का परिणाम है।
गुजरात: महानता की त्रिवेणी
उपराष्ट्रपति का यह कथन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि गुजरात वह पावन भूमि है जहां महात्मा गांधी ने अहिंसा का मार्ग प्रशस्त किया, सरदार पटेल ने एकता के सूत्र बुने और प्रधानमंत्री मोदी ने विकास को राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया। यह त्रिवेणी भारतीय सभ्यता के तीन स्तंभों का प्रतिनिधित्व करती है: अहिंसा, एकता और विकास।
आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर भारत
सरदार पटेल का "कृषि ही हमारी संस्कृति है" का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने सही कहा कि यह वर्ष तीन महान व्यक्तित्वों की 150वीं जयंती का साक्षी है: सरदार पटेल, वंदे मातरम् और भगवान बिरसा मुंडा। यह संयोग नहीं, बल्कि काल की गति है जो भारत को अपनी जड़ों से जोड़ने का संकेत दे रही है।
अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण "एक देश, एक विधान, एक प्रधान" की उस दृष्टि को साकार करता है जिसका स्वप्न सरदार पटेल ने देखा था।
युवा शक्ति: राष्ट्र निर्माण की आधारशिला
केंद्रीय मंत्री डॉ. मनसुखभाई मांडविया का अनुभव प्रेरणादायक है। उन्होंने बताया कि किसानों ने अपने खेतों से ताजे फल भेंट कर पदयात्रियों का स्वागत किया और प्राकृतिक खेती का प्रदर्शन किया। यह दृश्य उस भारत की झलक देता है जहां स्वावलंबन और सेवा भाव एक साथ फलते-फूलते हैं।
युवाओं को नशे से दूर रहने, खेल और सामाजिक जिम्मेदारी अपनाने का संदेश देकर उपराष्ट्रपति ने उस मार्ग की ओर इशारा किया है जो व्यक्तित्व निर्माण से राष्ट्र निर्माण तक जाता है।
नारी शक्ति और श्रमिक कल्याण
नारी शक्ति वंदन कानून और चार नई श्रम संहिताओं का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि आधुनिक भारत निर्माण में समानता और न्याय के सिद्धांत केंद्रीय हैं। यह वही दृष्टि है जो हमारे शास्त्रों में "सर्वे भवन्तु सुखिनः" के रूप में अभिव्यक्त हुई है।
संस्कारों की शक्ति
इस पदयात्रा में स्वच्छता, "एक पेड़ मां के नाम" और पर्यावरण संरक्षण के संदेश शामिल थे। यह दिखाता है कि सच्ची राष्ट्रभक्ति केवल नारेबाजी में नहीं, बल्कि दैनिक आचरण में निहित होती है।
राज्यपाल आचार्य देवव्रत द्वारा बारडोली सत्याग्रह का स्मरण कराना महत्वपूर्ण है। यह आंदोलन दिखाता है कि सत्य और अहिंसा के बल पर कैसे जनशक्ति को संगठित किया जा सकता है।
विकसित भारत 2047 की दिशा में
समापन समारोह में ली गई स्वदेशी अपनाने और आत्मनिर्भर भारत निर्माण की शपथ एक प्रतीकात्मक कार्य नहीं, बल्कि संकल्प की अभिव्यक्ति है। सरदार पटेल का "राष्ट्र प्रथम" सिद्धांत आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
यह पदयात्रा दिखाती है कि जब राष्ट्र अपनी जड़ों से जुड़ता है, तो उसमें असीम शक्ति का संचार होता है। सरदार पटेल की विरासत केवल इतिहास की वस्तु नहीं, बल्कि भविष्य निर्माण की प्रेरणा है।