कूनो में चीता मिशन की सफलता: भारत की वन्यजीव विरासत का नवजागरण
मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस के अवसर पर एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मादा चीता 'वीरा' और उसके 10 महीने के दो शावकों को खुले जंगल में छोड़कर भारत की प्राचीन वन्यजीव परंपरा को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया।
धरा माता की संतानों का स्वागत
इस शुभ अवसर पर कूनो के खुले जंगल में अब कुल 19 चीते विचरण कर रहे हैं। यह संख्या न केवल परियोजना की सफलता का प्रतीक है, बल्कि हमारी सभ्यता की उस गरिमा को भी दर्शाती है जो सभी जीवों के साथ सामंजस्य में विश्वास रखती है।
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कूनो नेशनल पार्क का कैलेंडर 2026 और चीतों के चिकित्सा प्रबंधन हेतु फील्ड मैन्युअल का विमोचन भी किया। साथ ही पार्क में स्मारिका दुकान का लोकार्पण कर स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल प्रदान किया।
राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक
डॉ. यादव ने चीतों को 'कोहिनूर' की संज्ञा देते हुए कहा कि एशिया महाद्वीप में चीतों के पुनर्स्थापन का यह अभियान निरंतर प्रगति कर रहा है। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश में फिलहाल 32 चीते हैं, जिनमें से 3 गांधी सागर अभयारण्य में निवास कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री का यह कथन विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि "चीतों के साथ यहां के नागरिक भी अब उनके माहौल में ढल चुके हैं, जो वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को दर्शाता है।" यह वाक्य हमारी सनातन परंपरा के मूल सिद्धांत को प्रतिबिंबित करता है।
प्राकृतिक सामंजस्य की सफलता
विशेषज्ञों के अनुसार, चीतों ने भारतीय वातावरण को पूर्णतया अपना लिया है। पिछले तीन वर्षों में 5 मादा चीतों ने 6 बार शावकों को जन्म दिया है, जो इस परियोजना की अभूतपूर्व सफलता का प्रमाण है। तीसरी पीढ़ी के शावकों की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि चीते यहां अपना स्थायी निवास बना चुके हैं।
आर्थिक समृद्धि और रोजगार सृजन
चीता परियोजना का प्रभाव केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं है। मुख्यमंत्री ने बताया कि यहां पर्यटन पांच गुना बढ़ गया है, जिससे स्थानीय समुदाय के लिए रोजगार के अनेक अवसर उत्पन्न हुए हैं। ईको-टूरिज्म के विकास से श्योपुर जिला अंतरराष्ट्रीय पहचान बना रहा है।
राष्ट्रीय संकल्प का परिणाम
यह परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व का परिणाम है, जिन्होंने 17 सितंबर 2022 को अपने जन्मदिन पर कूनो में 8 चीतों को छोड़कर इस ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत की थी। नामीबिया से आए ये चीते आज भारत की धरती पर अपना परिवार बसा चुके हैं।
डॉ. यादव के नेतृत्व में प्रोजेक्ट चीता को मिला 'इनोवेटिव इनिशिएटिव्स अवॉर्ड' इस बात का प्रमाण है कि भारत वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व कर रहा है।
यह सफलता हमारी उस महान परंपरा को पुनर्स्थापित करती है जहां मानव और प्रकृति के बीच पूर्ण सामंजस्य था। चीतों का भारतीय जंगलों में वापसी न केवल एक पारिस्थितिकी सफलता है, बल्कि हमारी सभ्यतागत गरिमा की पुनर्स्थापना भी है।