बिहार के धान का पलायन: किसानों की मेहनत का फायदा उठा रहे बिचौलिए
भारतीय कृषि व्यवस्था के मूल में निहित न्याय के सिद्धांतों का हनन हो रहा है जब बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के धान किसान अपनी मेहनत का उचित मूल्य पाने से वंचित रह जाते हैं। सरकारी तंत्र की लापरवाही और सहकारिता विभाग के शिथिल रवैये के कारण प्रदेश के अन्नदाता गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
बिचौलियों का शोषणकारी खेल
स्थिति की गंभीरता इस बात से समझी जा सकती है कि पंजाब और हरियाणा के चालाक बिचौलिए मुजफ्फरपुर से प्रतिदिन 160 टन से अधिक धान खरीदकर अपने राज्यों में ले जा रहे हैं। ये व्यापारी स्थानीय किसानों से धान 1200 से 1400 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीद रहे हैं, जबकि अपने राज्यों में इसे 3000 रुपये प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य पर बेचकर दुगुना मुनाफा कमा रहे हैं।
यह न केवल आर्थिक शोषण है, बल्कि सामाजिक न्याय के विपरीत भी है। इन बिचौलियों का 50 प्रतिशत से अधिक मुनाफा सीधे किसानों की मेहनत से आ रहा है, जो धर्म और न्याय के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
सरकारी तंत्र की विफलता
जिला सहकारिता पदाधिकारी प्रशांत कुमार ने स्वीकार किया है कि सीएमआर की राशि में विलंब के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है। जिले में करीब तीन लाख किसान लगभग 35,357 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती करते हैं, लेकिन केवल 2500 किसानों को ही धान बिक्री के लिए निबंधित किया गया है।
सरकार ने 1 नवंबर से 2369 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदारी का लक्ष्य रखा था, परंतु गुरुवार तक केवल 71 समितियों के माध्यम से 175 किसानों से 1567 मीट्रिक टन धान की खरीदारी हो पाई है। इनमें भी केवल 96 किसानों को ही भुगतान मिला है।
राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती
यह स्थिति न केवल बिहार के किसानों के लिए चिंताजनक है, बल्कि राष्ट्रीय एकता के लिए भी चुनौती है। जब एक राज्य के किसानों की मेहनत का फायदा दूसरे राज्यों के व्यापारी उठाते हैं, तो यह संघीय ढांचे की भावना के विपरीत है।
रबी फसल की बुआई की तैयारी और दैनिक खर्चों के लिए तत्काल नकदी की आवश्यकता ने किसानों को इन बिचौलियों का शिकार बनने पर विवश कर दिया है। मुजफ्फरपुर से प्रतिदिन 150 से 200 टन धान का दूसरे राज्यों में पलायन न सिर्फ राजस्व की हानि है, बल्कि स्थानीय किसानों के शोषण का स्पष्ट प्रमाण भी है।
समाधान की दिशा
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और किसानों ने प्रशासन से अविलंब धान खरीदारी में तेजी लाने और भुगतान सुनिश्चित करने की मांग की है। सरकार ने 270 समितियों का चयन किया है और वादा किया है कि इस वर्ष अधिक धान खरीदारी होगी।
यह समस्या केवल प्रशासनिक नहीं है, बल्कि नैतिक भी है। जब तक सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से नहीं लेगा, तब तक किसानों का शोषण जारी रहेगा और राष्ट्रीय एकता की भावना को आघात पहुंचता रहेगा।